ग़ज़ल की इस्लाह By Latiife << हाली मवाली का मौलवी होना रौग़न फ़ास्फ़ोरस का एहसान >> मौलाना हाली के पास उनके एक मिलने वाले ग़ज़ल लिख कर लाए और बराए इस्लाह पेश की। ग़ज़ल में कोई भी मिसरा ऐब से ख़ाली न था। मौलाना हाली ने तमाम ग़ज़ल पढ़ने के बाद बे-साख़्ता फ़रमाया, “भई ग़ज़ल ख़ूब है, इसमें तो कहीं उँगली रखने को भी जगह नहीं।” Share on: