एक दफ़ा अल्लामा से सवाल किया गया कि अक़्ल की इंतिहा क्या है? जवाब दिया, “हैरत” फिर सवाल हुआ, “इश्क़ की इंतिहा क्या है?” फ़रमाया, “इश्क़ की कोई इंतिहा नहीं है।” सवाल करने वाले ने फिर पूछा, “तो आपने ये कैसे लिखा। तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।” अल्लामा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “दूसरा मिसरा भी तो पढ़िए जिसमें अपनी हिमाक़त का ए’तिराफ़ किया है कि “मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।”