माह रमज़ान में एक बार प्रोफ़ेसर हमीद अहमद ख़ाँ, डाक्टर सईद उल्लाह और प्रोफ़ेसर अब्दुल वाहिद अल्लामा इक़बाल के घर पर हाज़िर हुए। कुछ देर बाद मौलाना अब्दुल मजीद सालिक और मौलाना ग़ुलाम रसूल मेहर भी तशरीफ़ ले आए। इफ़्तारी के वक़्त अल्लामा ने घंटी बजाकर नौकर को बुलाया और उससे कहा, “इफ़्तारी के लिए संगतरे, खजूरें, कुछ नमकीन और मीठी चीज़ें जो हो सके सब ले आओ।” सालिक ने अर्ज़ किया, “ओफ़्फ़ोह! इतना सामान मंगवाने की क्या ज़रूरत थी?” अल्लामा ने मुस्कुराते हुए फ़रमाया, “सब कुछ कह कर ज़रा रो’ब तो जमा दें, कुछ न कुछ तो लाएगा।”