अ’ल्लामा इक़बाल बचपन ही से बज़्ला-संज और शोख़ तबीयत वाक़े हुए थे। एक रोज़ (जब उनकी उम्र ग्यारह साल की थी) उन्हें स्कूल पहुँचने में देर हो गई। मास्टर साहब ने पूछा, “इक़बाल तुम देर से आए हो।” इक़बाल ने बे-साख़्ता जवाब दिया, “जी हाँ, इक़बाल हमेशा देर ही से आता है।”