मौलाना हाली के मक़ामी दोस्तों में मौलवी वहीद उद्दीन सलीम(लिटरेरी अस्सिटैंट सर सय्यद अहमद ख़ां) भी थे। जब ये पानीपत में होते तो रोज़ाना मौलाना हाली के पास जाकर घंटों बैठा करते थे। एक रोज़ सुबह ही सुबह पहुंचे। मौलाना ने रात को कोई ग़ज़ल कही थी। वो उनको सुनाई। सलीम सुनकर फड़क उठे और कहने लगे, “मौलाना वल्लाह जादू है।” मौलाना के बालाख़ाने के नीचे एक कोठरी थी, मौलाना ने एक मजज़ूब फ़क़ीर को रहने के लिए दे रखी थी। वो मजज़ूब बाहर गली में बैठा धूप ताप रहा था। जब उसके कान में ये फ़िक़रा पड़ा तो बे-इख़्तियार चिल्ला उठा, “जादू बरहक़ करने वाला काफ़िर।” मौलाना ने मुस्कराकर सलीम से कहा, “लीजिए मौलवी-साहब, सर्टीफिकट मिल गया।”