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एक-बार किसी अदीब ने मजाज़ से कहा: “मजाज़ साहिब! इधर आपने शे’रों से ज़्यादा लतीफ़े कहने शुरू कर दिए हैं।” “तो इसमें घबराने की क्या बात है?” और वो अदीब मजाज़ की इस बात पर वाक़ई घबराते हुए कहने लगा। “इसका मतलब ये होगा कि जब किसी मुशायरे में आप शे’र सुनाने के लिए खड़े होंगे तो लोग कहेंगे, शे’र नहीं अपने लतीफ़े सनाईए।” “तो मैं उनसे कहूँगा,” मजाज़ ने निहायत सफ़ाई और सादगी से कहा, “कि शायरी भी तो फुनूने लतीफ़ा (ललित कला) में से है।”