मजलिस-ए-वा’ज़ में मजाज़ Admin मेरा भाई शायरी, Latiife << मय का ग़र्क़-ए-दफ़्तर होन... मजाज़, शायर नहीं लतीफ़ा बा... >> मजाज़ अपनी नीम दीवानगी की हालत में एक-बार किसी मजलिस-ए-वा’ज़ में पहुंच गये। उनके किसी जानने वाले ने हैरत-ज़दा हो कर पूछा, “हज़रत मजाज़! आप और यहां?” “जी हाँ...” मजाज़ ने बहुत संजीदगी से जवाब दिया, “आदमी को बिगड़ते क्या देर लगती है भाई।” Share on: