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अकबर के मशहूर हो जाने पर बहुत से लोगों ने उनकी शागिर्दी का दावे कर दिया। एक साहिब को दूर की सूझी। उन्होंने ख़ुद को अकबर का उस्ताद मशहूर कर दिया। अकबर को जब ये इत्तिला पहुंची कि हैदराबाद में उनके एक उस्ताद का ज़हूर हुआ है, तो कहने लगे, “हाँ मौलवी-साहब का इरशाद सच्च है। मुझे याद पड़ता है मेरे बचपन में एक मौलवी-साहब इलाहाबाद में थे। वो मुझे इल्म सिखाते थे और मैं उन्हें अ’क़्ल, मगर दोनों नाकाम रहे। न मौलवी-साहब को अ’क़्ल आई और न मुझको इल्म।”