नारंग साक़ी के हाँ एक दा’वत में मुनीर नियाज़ी, क़तील शिफ़ाई, मुज्तबा हुसैन, केवल सूरी, सरवर तौंसवी, कैलाश माहिर और बहुत से दूसरे अहबाब जमा थे। शे’रो शायरी का सिलसिला शुरू हुआ। सब लोग सुना चुके तो क़तील शिफ़ाई ने मुनीर नियाज़ी से कहा, “कुछ सुनाओ भाई।” चूँकि मुनीर नियाज़ी सुनाने की हालत में नहीं रह गये थे लिहाज़ा उन्होंने केवल सूरी से कहा कि वो उनके शे’र सुनाए। शे’र सुनने के बाद क़तील ने मुनीर से कहा कि सूरी शे’र अच्छे तौर पर सुनाता है बेहतर है कि लिखवा भी इसी से लिया करो।