मजरूह सुलतानपुरी ने साहिर लुधियानवी की किसी बात पर बरह्म होते हुए कहा, “याद रखो साहिर! जब तुम मर जाओगे तो उर्दू का कोई तरक़्क़ी-पसंद अदीब तुम्हारे जनाज़े के साथ नहीं जाएगा।” साहिर ने फ़िल-फ़ौर जवाब दिया, “मुझे इसका कोई ग़म नहीं। लेकिन मैं फिर भी हर तरक़्क़ी-पसंद अदीब के जनाज़े में शरीक हूँगा।”