ज़बान दराज़ी Admin जय भोले नाथ शायरी, Latiife << अंधे को अंधेरे में बड़ी दू... अह्ल-ए-फ़न का ज़वाल >> गोपी नाथ अमन जिन दिनों ज़िंदगी और मौत की कश्मकश में बिस्तर पर दराज़ थे डाक्टर उन्हें देखने आया तो उसने अमन साहिब से कहा: “ज़रा ज़बान निकालिए।” अमन साहिब ने मुस्कराकर कहा, “जनाब ज़बान दराज़ी अच्छी नहीं होती।” Share on: