अभी तो तुझे एक फेंटी लगी है By मिज़ाह, Mazahiya << नज़्म-ए-जहाँ को ज़ेर-ओ-ज़... मैं तिरा शहर >> अभी तो तुझे एक फेंटी लगी है अभी तो तिरे इम्तिहाँ और भी हैं Share on: