नज़्म-ए-जहाँ को ज़ेर-ओ-ज़बर देखता हूँ मैं मादा के इख़्तियार में नर देखता हूँ मैं आँखों पे बन रही है अगर देखता हूँ में ये जानता हूँ उन को मगर देखता हूँ मैं मैं देखता नहीं हूँ अगर देखते हैं वो वो देखते नहीं हैं अगर देखता हूँ मैं वाइज़ ने मुझ में देखी है ईमान की कमी वाइज़ में सिर्फ़ दुम की कसर देखता हूँ मैं अब ये हुई है जल्वा-नुमाई की इंतिहा वो सामने डटे हैं जिधर देखता हूँ मैं अल्लाह-रे रोब-ओ-दाब-ए-जुनूँ भागता है वो जिस की तरफ़ उठा के नज़र देखता हूँ मैं कहती है हर गिरह कि रिहाई मुहाल है जब चोंच से टटोल के पर देखता हूँ में जिस वक़्त मिल के पढ़ते हैं दोनों किताब-ए-इश्क़ वो ज़ेर देखते हैं ज़बर देखता हूँ मैं