रहीमुल्लाह हुआ अच्छा तो उस ने ये देखा हो चुकी है ''पार्टीशन'' गए कुछ भाग और कुछ मर चुके हैं न नेता-सिंह बाक़ी है न भीषन सुने इस दास्ताँ के जब फ़साने तो ग़ुस्से ने बनाया उस को मजनूँ तड़प उट्ठा कि ले कैसे वो बदला पिए इन काफ़िरों का किस तरह ख़ूँ न क्यूँ कहला सका वो मर्द-ए-ग़ाज़ी न जब ये मिल सका वो ख़ूब रोया यका-यक उस के सब पलटे ख़यालात तो उस ने दामन-ए-इस्लाम छोड़ा किनारा-कश हुआ सब भाइयों से नए मज़हब से रिश्ता अपना जोड़ा कई दिन बाद जब निकला वो घर से तो उस के मुँह पे दाढ़ी सर पे थे बाल निहाला-सिंह अब था नाम उस का लिए किरपान वो ग़ुस्से से था लाल हज़ारों ख़ूँ-फ़िशाँ अरमान ले के खड़ा था आज वो मस्जिद के आगे पकड़ने के लिए उस को नमाज़ी नमाज़ें छोड़ कर मस्जिद से भागे लगा कर एक नारा वहश-आलूद वही किरपान झट उस ने निकाली लगा कर क़हक़हा फिर इक फ़लक-रस मअन सीने में अपने घोंप डाली तमन्ना थी कि इक सिख मैं भी मारूँ ये पूरी तू ने की अल्लाह-तआला बहुत ख़ुश हूँ रहीमुल्लाह-ख़ाँ ने निहाला-सिंह-जी को मार डाला