सदा-ए-दरवेश By मिज़ाह, Mazahiya << लॉन में तीन गधे और ये नोट... जैसे इस्लाम में है रस्म म... >> सुब्ह तक़रीर यहाँ शाम को तक़रीर वहाँ चीख़ते चीख़ते लीडर का गला बैठ गया हर गली-कूचे में दिन रात लगाता है सदा जो दे उस का भी भला जो न दे उस का भी भला Share on: