जैसे इस्लाम में है रस्म मुसलमानी की वैसे ही इश्क़ में है चाक-गरेबानी की गत यही ख़ून की होती है जो है पानी की रुत बदल जाती है जब फ़ितरत-ए-इंसानी की हश्र में हो गई सेह्हत मरज़-ए-इस्याँ से एक ख़ूराक दवा पी के पशेमानी की सूख कर हो चुका है ज़र्द मरीज़-ए-ग़म-ए-हिज्र फ़स्ल अब कटने ही वाली है परेशानी की दोनों दरख़्वास्तें उस शोख़ ने ख़ारिज कर दीं पहले तो वस्ल की और फिर नज़र-ए-सानी की ज़िंदगी काट दी जल जल के जहाँ में 'माचिस' वाक़ई तू ने बड़ी इश्क़ में क़ुर्बानी की