आज छब्बीस है जनवरी की मगर दिल में तस्वीर माज़ी की मुबहम सी है आज के वास्ते अपने अस्लाफ़ ने कितनी क़ुर्बानियाँ दी थीं मगर जिन को हम ने फ़रामोश सा कर दिया उन के ख़्वाबों को मिस्मार सा कर दिया है अब ज़रूरत है इस बात की ख़्वाब बिखरे जो हैं उन की यक-जाई हो इक नए हिन्द की फिर से ता'मीर हो मुसावात सब का मुक़द्दर बने सब से इंसाफ़ हो सुब्ह का उजाला नुमूदार हो