मसअलों के यख़-बस्ता सहरा में मेरा आधा बदन धँस चुका है बरसों से मैं गड़ा हुआ हूँ बर्फ़ के अंदर खड़ा हुआ हूँ कई बार मेरा बदन मुकम्मल तौर पर बर्फ़ के अंदर धँस चुका है वो सूरज ख़ुदा का सूरज सब के ख़ुदा का सूरज जिस की शुआएँ मस्लहत का मल्बूस ओढ़ कर मेरे क़रीब मेरा मिज़ाज पूछने के लिए आती हैं और मेरे सर से आधे बदन तक बर्फ़ को चाट कर मेरे बदन को उर्यां कर के चली जाती हैं और आसमान की अपनी सुनहरी मसनद पर बैठ कर मेरी उर्यानियत से लुत्फ़-अंदोज़ होती हैं