आज ये आज क्या है कभी तुम ने सोचा भी है आज ये आज तारीख़ है अपनी तहज़ीब की अपने अनमोल माज़ी की मीरास है आज ये आज क्या है कभी तुम ने सोचा भी है आज ये आज पैग़ाम है अपने मुस्तक़बिल-ए-ताबनाक-ओ-ज़िया-पाश का अपने फ़र्दा की ख़ुश-रंग ता'बीर है आज ये आज क्या है कभी तुम ने सोचा भी है आज ये आज सिर्फ़ इक नहीं आज ही है ये माज़ी की अनमोल मीरास भी है ये फ़र्दा की ख़ुश-रंग ता'बीर भी