ज़रा देखो तो माँ पेड़ों पे चिड़ियाँ ख़ुशी के गीत कैसे गा रही हैं बताओ कब तक आएगा वो दिन माँ कि मैं गाऊँगा आज़ादी के नग़्मे मिरे बेटे न हो मायूस हरगिज़ नदी जैसे पहाड़ों से उतर कर समुंदर की तरफ़ चलती है सरमस्त कि मक्खी शहद की जैसे दम-ए-शाम पलटती है तो छत्ते ही की जानिब बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा है उसे रोके भला किस में है ताक़त उसे टोके भला किस में है जुरअत मिरे बेटे यक़ीं कर एक दिन तू इसी चिड़िया की सूरत होगा आज़ाद क़फ़स की तीलियाँ टूटेंगी इक दिन फ़ज़ाएँ क़ैद से छूटेंगी इक दिन नई मंज़िल की ख़ातिर मेरे जाँबाज़ किसी ताज़ा सफ़र का होगा आग़ाज़