ये तुम सब कि जिन के सरों में जवानी का ख़ूँ लहलहाता है मुझ से रसीद अपनी मेहनत की भी लेते जाओ मोहब्बत के बारे में जो भी किसी ने बताया है पूरी हक़ीक़त नहीं क्यूँकि चाहत रिवायत नहीं तज्रबा है हक़ीक़त में हर आदमी मोहतरम है वो ख़ुद उस की जब तक न तरदीद कर दे ये पहले भी मैं ने कहा था तुम्हारे लबों से जो कानों को पहुँचे वो हर्फ़ इस्म-ए-आज़म हो देखो वही जिस में कल की बशारत हिदायत हर इक ख़ैर की ताज़ा एहसास की रौशनी हो जो कानों में उतरे तुम उस में से अमृत निथारो कि अमृत में दिल रूह और ज़ह्न की तीस बीमारियों की शिफ़ा है ज़बाँ पर वो तासीर रखना कि जिस से ज़माने को ख़ुद अपनी पहचान हो अपने हर इल्म को आप ही देखना और अपनी ज़बाँ से ही पढ़ना ज़माने को छूना कि हर नस्ल ने जो हक़ाएक़ तराशे वो अपने ही हाथों घड़े हैं कि हर अहद ने आग को छू के ही आग माना ये तुम भी करोगे ये सब तुम भी करना किताबों को बस सूँघना छोड़ देना ये कुल्ली सदाक़त नहीं हैं तुम्हारे ज़माने से पहले के लिखे हुए नादिर औराक़ कल की हर इक पेश-बीनी से आरी हैं इन सब किताबों के पहले वरक़ सिर्फ़ इस वास्ते ख़ाली रक्खे गए हैं कि तुम इन पे अपने ज़माने की सच्चाइयाँ लिख के जाओ हम ऐसों की ख़ातिर जिन्हें कल तुम्हारा लिखा पढ़ के फिर याद करना है आते हुओं को सुनाना है