आख़िर ऐसा क्यों है पापा मेरे शहर-ए-कलकत्ता में मुर्ग़ी नहीं मुर्ग़ी हट्टे में कोल्हू नहीं कोल्हू टोले में माला नहीं माला-पाड़े में बेला नहीं बलिया घाटे में आख़िर ऐसा क्यों है पापा मेरे शहर-ए-कलकत्ता में चूना गली में चूना कब है शीशा गली में शीशा कब है छाता गली में छाता कब है बक्सा गली में बक्सा कब है आख़िर ऐसा क्यों है पापा मेरे शहर-ए-कलकत्ता में भिश्ती नहीं भिश्ती-पाड़े में मोची नहीं मोची-पाड़े में हाजी नहीं हाजी-पाड़े में क़ाज़ी नहीं क़ाज़ी-पाड़े में आख़िर ऐसा क्यों है पापा मेरे शहर-ए-कलकत्ता में ताल नहीं है ताल-तले में नीम नहीं है नीम तले में झाव नहीं है झाव-तले में बाँस नहीं है बाँस-तले में आख़िर ऐसा क्यों है पापा मेरे शहर-ए-कलकत्ता में हैरत से जब मैं ने पूछा बस इतना ही बोले पापा आज नहीं है लेकिन बेटा बरसों पहले होता होगा