आख़िरी साँस By Nazm << सब का हो एक ना'रा मुझे शाम आई है शहर में >> शम्अ की लौ ने जब आख़िरी साँस ली आख़िर-ए-शब निगाहों से गिरने लगी ओस पहलू बदलने लगी राह की जागती गर्द सोने लगी रात और ख़ामुशी गीत बुनने लगी नक़्श-ए-बे-ख़्वाब चलने लगे हाल ओ माज़ी कहीं आँख मलने लगे मंज़िलों के निशाँ चीख़ते रह गए Share on: