आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते वर्ना ये रात आज के संगीन दौर की डस लेगी जान ओ दिल को कुछ ऐसे कि जान ओ दिल ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें गो हम से भागती रही ये तेज़-गाम उम्र ख़्वाबों के आसरे पे कटी है तमाम उम्र ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब होंटों के ख़्वाब और बदन के ख़्वाब मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब तहज़ीब-ए-ज़िंदगी के फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब ज़िंदाँ के ख़्वाब कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब ये ख़्वाब ही तो अपनी जवानी के पास थे ये ख़्वाब ही तो अपने अमल की असास थे ये ख़्वाब मर गए हैं तो बे-रंग है हयात यूँ है कि जैसे दस्त-ए-तह-ए-संग है हयात आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते वर्ना ये रात आज के संगीन दौर की डस लेगी जान ओ दिल को कुछ ऐसे कि जान ओ दिल ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकीं