तिरी चश्म-ए-ख़ंदाँ तिरा ये तबस्सुम फ़लक से तके हैं सभी माह-ओ-अंजुम बहारों के मौसम तुम्हें ढूँडते हैं तुम्हें चाहते हैं तुम्हें पूजते हैं तुम्हें देख कर ये हवा झूमती है ज़मीं नाचती है क़दम चूमती है बताऊँ मैं कैसे कि कितनी हसीं हो नहीं आफ़रीं वो जो तुम सा नहीं हो अगर चार ही लफ़्ज़ कहने हों मुझ को मिरी जान मैं बस यही कह सकूँगा परी-रू परी-रू लताफ़त लताफ़त मगर उन से बढ़ के मोहब्बत मोहब्बत