आरज़ू By Nazm << मिरी मैं जश्न-ए-शब-ए-मुनव... अभी उस की ज़रूरत थी >> मेरी एक ख़्वाहिश है कोई एक नुक़्ता हो जो वजूद की सारी सरहदों से बाहर हो जिस पे जा के मैं अपना एक जाएज़ा ले लूँ अपने-आप से हट कर अपने-आप को देखूँ मेरी एक ख़्वाहिश है! Share on: