शब के आवारा-गर्द शहज़ादे जा छुपे अपनी ख़्वाब-गाहों में पड़ गए हैं गुलाबी डोरे से रात की शबनमी निगाहों में सीम तन अप्सराओं के झुरमुट महव-ए-परवाज़ हैं फ़ज़ाओं में रात-रानी की दिल-नशीं ख़ुश्बू घुल गई मंचली हवाओं में झील की बे-क़रार जल-परियाँ आ के साहिल को चूम जाती हैं दम-ब-दम मेरी डूबती नज़रें तेरी राहों पे घूम जाती हैं मुंतज़िर है उदास पगडंडी एक संगीत रेज़ आहट की राह तकती हैं अध-खुली कलियाँ तेरी मासूम मुस्कुराहट की जाने कितने ही रत-जगे बीते आरज़ूओं की नर्म जानों पर सो गए थक के दर्द के मारे आस की खुरदुरी चटानों पर