सर-चश्मा-ए-अख़लाक़ वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश ऐ मशरिक़-ए-इशराक़-ए-सफ़ा अब्र-ए-ख़ता-पोश यूँ तेरे दिल-ए-साफ़ में इशराक़-ए-मोहब्बत जिस तरह कि लौ सुब्ह को दे दुर्रे-ए-नया-गोश मैं कौन हूँ इक दिल हूँ जिसे ज़ब्त ने मारा कर देगी फ़ना मुझ को मिरी कोशिश-ए-ख़ामोश वो दिल हूँ इबारत जो है नज़्म-ए-अबदी से इक ख़ून का नुक़्ता हूँ मैं पुर-मअ'नी-ओ-पुर-जोश जिब्रील मिरे साथ रहे रोज़-ए-अज़ल से मय-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ में शब-ओ-रोज़ क़दह-नोश कुछ मुँह से निकल जाएँ न समझी हुई बातें रहने दो मुझे मजलिस-ए-मय में यूँही मदहोश सरसब्ज़ हूँ ज़ाहिर में मगर ऐ दिल-ए-ख़ूँ-गर्म जिस तरह हिना में है निहाँ आतिश-ए-ख़ामोश दिल पर ये सितम क्यूँ न हो हम-जिंस पे तासीर काबा इसी ग़म में नज़र आता है सियह-पोश अय्यूब नहीं हूँ कोई मासूम नहीं हूँ ता-चंद मज़ालिम पे रहूँ साकित-ओ-ख़ामोश हैं जितने अक़ारिब वो अक़ारिब से हैं बद-तर अहबाब हैं वो ख़ुद-ग़रज़-ओ-ज़ूद-फ़रामोश दिल साफ़ नहीं सब हैं सुख़न-साज़-ओ-सुख़न-चीं ये मेहर तो है ज़हर अगर नीश में हो नोश कहते हैं जिसे दोस्त वो इस दौर में अन्क़ा समझे हैं जिसे मेहर वो इस अहद में रू-पोश किस दौर में आए हैं हम ऐ मज्लिस-ए-साक़ी जब रिंद-ए-ख़राबात-नशीं हो गए मदहोश दिल क्या मिरी आँखों का है टूटा हुआ सोता तूफ़ान उठा देंगे यही चश्मा-ए-ख़स-पोश ठोकर से जिलाता हूँ मज़ामीन-ए-कुहन को है फ़ित्ना-ए-महशर मिरी उतरी हुई पा-पोश हम-संग जवाहिर कभी पत्थर नहीं होता हर चंद तराशे कोई सन्ना-ए-सफ़ा-कोश गो मुझ को ख़ुदा-दाद तबीअ'त ने सँवारा मुजरिम हूँ अगर हूँ कभी एहसान-फ़रामोश तरकश में मिरे तीर बहुत कम हैं मगर हैं ऐसे कि उड़ा दें क़दर-अंदाज़ के जो होश पिंदार-ए-ख़ुदी है अज़ीज़ उन को तो हमें किया हम इश्क़ के बंदे हैं वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश
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