आवाज़ से बाहर By Nazm << चार यार इस शहर में >> कई सदियों से आवाज़ों ने रूहों को भँभोड़ा है सजल एहसास की रग से लहू का आख़िरी क़तरा क़रीने से निचोड़ा है मिरे अगलों को मुझ को गुम-शुदा ख़्वाबों की मंज़िल पर बिना आवाज़ जाना है सदा के मा'बदों की तीरगी को छोड़ कर पीछे ख़लाओं में नया रस्ता बनाना है Share on: