अब रहा कौन मुझे आस दिलाने वाला घुप अँधेरों में दिया घर का जलाने वाला ख़्वाब-ए-ग़फ़लत से जो बेदार किया करता था सो गया आज वो क्यों मुझ को जगाने वाला जब कि मंज़िल की तजस्सुस में था गुमराह-ए-सफ़र चल दिया छोड़ के क्यों राह दिखाने वाला रूठ जाने का रवय्या ये मुनासिब तो न था रूठ क्यों मुझ से गया मुझ को मनाने वाला फिर वो 'ख़ुर्शीद' मिरी रूह के अंदर चमके क्यों चला जाता है हर नाज़ उठाने वाला