सुनो कसरत-ए-ख़ाक में बसने वालो सुनो तौसन-ए-बर्क़-रफ़्तार पर काठियाँ कसने वालो ये फिर कौन से मा'रके का इरादा तुम्हारी नसों में ये किस ख़्वाब-ए-फ़ातेह का फिर बाब-ए-वहशत खुला है फ़सीलों पे इक परचम-ए-ख़ूँ-चकाँ गाड़ देने की निय्यत कई लाख मफ़्तूह जिस्मों को फिर हालत-ए-सीना-कूबी में रोते हुए देखने की तमन्ना ये किस आब-ए-दीवानगी से बदन का सुबू भर रहे हो सुनो तुम बड़ी बद-नुमा रात की धुँद में फ़ैसला कर रहे हो उधर सैंकड़ों कोस पर इक पहाड़ी है जिस पर कोई शय नहीं है वहाँ हर तरफ़ से तुम्हें आग के ग़ोल घेरे में लेने की ख़ातिर खड़े हैं अभी वक़्त है लूट जाओ सुनो उजलत-ए-फ़िक्र में कोई भी काम अंजाम पाता नहीं फिर किसी साअ'त-ए-शब-गिरफ़्ता में कोई सितारा बुलाता नहीं