तख़्लीक़ के ख़ुमार में चूर एक ख़ुश-गवार मोड़ में उस ने जब बे-हिसाब लोगों के नसीब में ख़ुशियाँ लिख डाली होंगी बे-शुमार तब उस ने रुक कर सोचा होगा तवाज़ुन की ख़ातिर कुछ तो तब्दीली चाहिए और यूँ उस मोड़ में लिख कर अगला नसीब उस ने जो पल्टा सफ़हा वो मेरा था