थे दयार-ए-नौ ज़मीन-ओ-आसमाँ मेरे लिए वुसअ'त-ए-आग़ोश मादर इक जहाँ मेरे लिए थी हर इक जुम्बिश निशान-ए-लुत्फ़-ए-जाँ मेरे लिए हर्फ़-ए-बे-मतलब थी ख़ुद मेरी ज़बाँ मेरे लिए दर्द-ए-तिफ़ली में अगर कोई रुलाता था मुझे शोरिश-ए-ज़ंजीर-ए-दर में लुत्फ़ आता था मुझे तकते रहना हाए वो पहरों तलक सू-ए-क़मर वो फटे बादल में बे-आवाज़-ए-पा उस का सफ़र पूछना रह रह के उस के कोह-ओ-सहरा की ख़बर और वो हैरत दरोग़-ए-मस्लहत-आमेज़ पर आँख वक़्फ़-ए-दीद थी लब माइल-ए-गुफ़्तार था दिल न था मेरा सरापा ज़ौक़-ए-इस्तिफ़्सार था