अहल-ए-हुनर बेकार हुए By Nazm << बे-अमाँ याद रह जाने की कोशिश >> इक उम्र की काविश से हम ने जो कार-ए-तमन्ना सीखा था दुनिया के नए बाज़ार में अब कुछ माँग नहीं बाक़ी उस की ये ज़ोम-ए-मोहब्बत क्या कीजे हम अहल-ए-हुनर बेकार हुए Share on: