शब-ए-नशात के प्यारों को छोड़ आया हूँ मैं कितने चाँद सितारों को छोड़ आया हूँ ये चाँदनी पे घटाएँ ये नीलगूँ दरिया मैं ऐसे कितने नज़ारों को छोड़ आया हूँ तसव्वुरात की दुनिया हसीन थी जिन से मैं उन हसीन दयारों को छोड़ आया हूँ कोई बताए मुझे अब जियूँ तो कैसे जियूँ मैं ज़िंदगी के सहारों को छोड़ आया हूँ है अपनी पस्ती-ए-हिम्मत का ए'तिराफ़ मुझे ख़िज़ाँ की ज़द पे बहारों को छोड़ आया हूँ