एहसास By Nazm << एक वाक़िआ ज़िंदा आदमी से कलाम >> लम्हात का हयूला कुछ भूलने लगा था आवाज़ का सरापा कुछ ऊँघने लगा था सन्नाटा पा-शिकस्ता कुछ बोलने लगा था वहशत-ज़दा सा कमरा कुछ ढूँडने लगा था मेरा शुऊर ज़द में तहत-ए-शुऊर की था Share on: