ख़्वाहिशों की मंज़िल पर हसरतों के रस्ते में दिलबरी के पर्बत पर वहशतों की वादी में बे-ख़ुदी के सहरा में आगही के दरिया में वक़्त के झमेले में रोज़-ओ-शब के रेले में दिल पे जो गुज़रती है वो इसी हक़ीक़त का इंकिशाफ़ करती है हर मक़ाम-ओ-मंज़िल पर आदमी अकेला है