तुम मुझे पाने के चाहे जितने जतन कर लो तुम बा-वफ़ा ब-मअ'नी हो मैं तो इक लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी अपने आप से कब मिला हूँ जो तुम से मिल लूँ तुम्हें पा लूँ ये और बात कि मेरे तख़य्युल की असास तू आईना तू आईना-गर भी तू रज़ा भी तू क़ज़ा भी तू रिदा भी तू अदा भी तू सज़ा भी तू जज़ा भी तू ख़ुदी भी तू ख़ुदा भी तू लेकिन न जाने क्या बात है दिल दिल से दूर रहते हैं आँख से कोई आँख भी नहीं मिलती हाथ से हाथ ख़ौफ़ खाते हैं फ़ज़ा में साँस लेती हैं महरूमियाँ इस लिए शाम ही से आयतल-कुर्सी पढ़ लेती हैं न-जाने कितनी उदासियाँ तुम जो चाहो तो वक़्त का गौहर समेट लो या अपनी ही प्यास से समुंदर समेट लो तुम मुझे पाने के चाहे जितने जतन कर लो तुम बा-वफ़ा ब-मअ'नी हो मैं तो एक लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी अपने आप से कब मिला हूँ जो तुम से मिल लूँ तुम्हें पा लूँ