अज़ाब-ए-हिज्र By Nazm << हिस्टीरिया मगर ये ज़ख़्म ये मरहम >> ये तेरे हिज्र की आँधी कहाँ ले आई है मुझ को यहाँ हर सम्त इक सूरज सवा नेज़े पे जलता है न सर से धूप उतरती है न साया कोई ढलता है हवा-ए-शाम चलती है न कोई शम्अ' जलती है फ़लक पर नज्म आते हैं न तो महताब आता है किसी की आँख सोती है न कोई ख़्वाब आता है Share on: