अज़ल से अबद By Nazm << बे-आबाद घरों का नौहा आधी रात का मंतर >> मेरे हाथों ने तुझ को छुआ तक नहीं मुझ को सूरज की उस रौशनी की क़सम तू कहीं भी रहे मैं कहीं भी रहूँ दिल तिरे पास है मैं अज़ल से अबद तक तिरे साथ हूँ तू मिरे साथ है Share on: