याद ने अपने पँख फिर से खोल लिए एक नई उड़ान के लिए दूर बहुत दूर फ़लक के उस कोने पर जहाँ एक ऐसी बस्ती है जिस की फ़ज़ा में अनगिनत रंगीन नज़ारे बिखरे हुए हैं जिन को सिर्फ़ छू के रूह उन बुलंदियों का सफ़र तय करती है जिस की आस मुझे भी है और तुम्हें भी आओ मेरे साथ मैं तुम्हें वो सरगोशियाँ सुनाऊँ कभी तुम ने मेरे कानों में बहुत धीरे और बहुत धीरे से की थीं मैं ने जिन्हें बहुत सँभाल रक्खा है और उन तमाम लम्हों को सीनों में क़ैद करके समुंदर के ख़ूबसूरत नीलगूँ पानी की थाह मैं छुपा दिया है ताकि कोई भी आँख छू न सके और मुझ से छीन कर न ले जा सके तुम भी नहीं ऐसा फिर नहीं होगा क्यूँकि अब मैं ऐसा होने नहीं दूँगा