तू ने आने न दिया दुनिया में मैं तिरे जिस्म का ही हिस्सा थी इस तरह क्यूँ मिटा दिया मुझ को मैं मोहब्बत का तेरे क़िस्सा थी मुझ को हिस्सों में बाँट डाला था कितने टुकड़ों में काट डाला था मेरे होने से होता क्या नुक़सान नोच ली क्यूँ ये तुम ने नन्ही जान मेरे होने से क्या कमी होती मैं तिरे घर की लक्ष्मी होती कुछ मुक़द्दर नहीं था क्या मेरा क्या मुझे हक़ नहीं था जीने का बाँट लेती मैं तेरी हर मुश्किल तेरी आसान ज़िंदगी होती हाथ बनती कभी मैं पाँव तिरे मैं तिरे घर की रौशनी होती बोझ क्यूँ बेटियाँ समझते हैं हाए ये दुनिया वाले कैसे हैं बेटियाँ ही लगेंगी जब भारी ख़त्म फिर काएनात है सारी