अजनबी By Nazm << पंद्रह अगस्त उठेंगे मौत से पहले >> जिस रात नहीं आता हूँ मैं, मेरे घर में होता है कोई इस बिस्तर पर सोता है कोई इस कमरे की दहलीज़ पर सर रख कर रोता है कोई ये छुप छुप कर रोने वाला अपनी ही तरह महरूम न हो मग़्मूम न हो, मज़लूम न हो मुमकिन है उसे भी छुप छुप कर रोने का सबब मालूम न हो Share on: