लफ़्ज़ भूल जाता हूँ बात कह नहीं पाता मोतियों से पानी पर अक्स तो बनाता हूँ कुछ मैं याद रखता हूँ कुछ मैं भूल जाता हूँ रौशनी को तकता हूँ थोड़ी देर चलता हूँ दिल में बात जो भी है तुम से कह नहीं पाता लफ़्ज़ भूल जाता हूँ फिर ये सोच आती है दिल की बात करने को लफ़्ज़ क्यों ज़रूरी हैं जो भी तुम को पढ़ना है सब लिखा है आँखों में हो सके तो पढ़ लेना पढ़ अगर न पाओ तो ख़ुद से ही बना लेना फिर ज़रा सँभलता हूँ इक छड़ी पकड़ता हूँ खिड़कियों के पन्ने पर इक शबीह बनाता हूँ कुछ मैं याद रखता हूँ कुछ मैं भूल जाता हूँ अन-कही सी बातों में सिलसिले पुराने हैं कैसे कैसे चेहरे हैं कैसे दोस्ताने हैं ज़िंदगी ज़रा सी है मुख़्तसर फ़साने हैं राख दिल कुरेदें तो दफ़्न कितनी यादें हैं कैसे कैसे चेहरे हैं क़ीमती ख़ज़ाने हैं