रंग भरती है फ़ज़ाओं में तिरी फ़िक्र-ए-रसा हुस्न का पैकर नज़र आती है हर मौज-ए-सबा देख कर पुर-हौल सन्नाटे में उजड़ी बस्तियाँ ग़म से रह जाता हूँ दाँतों में दबा कर उँगलियाँ तेरी ज़ुल्फ़ें बदलियाँ आँखें सितारों की तरह चाल में हैं मस्तियाँ रंगत शरारों की तरह रुकने लगते हैं उजालों के उसी दम जैसे पाँव जिस तरफ़ पगडंडियों पर पड़ती है गागर की छाँव मुज़्तरिब होता है इस मंज़र से दिल इंसान का धड़कनों पर दिल की होता है गुमाँ तूफ़ान का ऐ मुसव्विर तुझ को शाइ'र ने इसी पर मात दी खींच भी सकता है तू तस्वीर एहसासात की काश दे सकता तुझे हुस्न-ए-बसीरत तेरा फ़न हर मुरक़्क़ा' तेरा बन जाता ख़ुद अपनी अंजुमन कौन है क़ाइल तिरी इस शोख़ी-ए-तहरीर का तू मुसव्विर ही नहीं जज़्बात की तस्वीर का