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उस ने रमते जोगी के आगे रोटियाँ रख दें और बहते पानी के सामने एक दीवार खड़ी कर के फ़ातेहाना अंदाज़ में कहा: देखो! मैं ने दोनों को रोक दिया है और अब तुम्हारी बारी है ये कह कर उस ने मेरे तमाम रंग कीचड़ में उलट दिए मैं ने दौड़ कर क़लम उठाना चाहा लेकिन उस ने मेरे हाथों के पहोंचे उतरवा दिए मैं ज़ोर ज़ोर से चीख़ने लगा तो उस ने मेरी ज़बान काट कर फेंक दी और मुझे मज़बूत अंधेरों से जकड़ दिया सालहा-साल से घटा-टोप ख़ामोशियाँ बसर करता हुआ मैं देख रहा हूँ कीचड़ में बिखरे हुए रंगों के बीच मेरी कटी हुई ज़बान दर्द-ए-ज़ेह से तड़प रही है अल्फ़ाज़ की विलादत का दिन क़रीब आ गया है