बारिशों के मौसम में अजनबी सी राहों में इस तरह तुम्हें मिलना और फिर बिछड़ जाना याद फिर दिलाता है कि अभी गुलाबों की मोतिए के फूलों की शोख़ तितलियों जैसी रुत अभी भी बाक़ी है रूह के सफ़र में हम मिल चुके हैं पहले भी माह-ओ-साल की गर्दिश पास ले के आई थी और फिर यही गर्दिश दूर ले गई हम को ज़िंदगी के सर्कस में कौन कब मिले हम से कौन दूर जाता है बस यही वो लम्हा था जो अमर था पहले भी और अब भी है शायद