मैं पर्दा गिराने लगा हूँ पलक से पलक को मिलाने लगा हूँ ज़माना मिरे ख़्वाबों में आ के रोने लगा है मैं ऊँटों को ले आऊँ आख़िर कहाँ जा के चरने लगे हैं जहाँ पर परिंदे परों को नहीं खोलते हैं जहाँ सरहदें हैं फ़लक जैसी क़ाएम वहाँ पाँव धरने लगे हैं मैं ऊँटों को ले आऊँ वापस मैं भेड़ों को दूह लूँ कई माओं की छातियाँ छिपकिली की तरह सूखे सीने की छत से इक अर्से से लटकी हुई हैं उन्हें जा के मोह लूँ कई फ़ाख़ताएँ जो निकली थीं कह कर कि आएँगी वापस चमकती दोपहरों से पहले वो मर्ग-आसा अंधे ख़लाओं में भटकी हुई हैं गधे वाला बे-वज़न रूई को लादे हुए शहर से लौट आया है हल्की थी रूई बहुत भारी दिन था तला-दोज़ ताजिर ने मोती भी लाने का उस से कहा था जो रंगीं उरूसाना जोड़े में जड़ने हैं नादाँ दुल्हन को भी मालूम है तेज़ बारिश तो होनी है ओले तो पड़ने हैं नाज़ुक सी टहनी पे झूला है झूले की रस्सी है नाज़ुक सो रस्सी में बल आख़िर-कार पड़े हैं अंधराता बढ़ने लगा है मछेरे को दरिया से वापस भी आना है तन्नूर में गीली शाख़ें जलानी हैं तन्नूर की तरह ख़्वाबों-भरी जल रही है उसे भी कुशादा भरे बाज़ुओं में तो आना है!!