अँधेरी रात के मुसाफ़िर ज़रा दम तो लो ज़मीन संगलाख़ सफ़र तन्हा सदा-ब-सहरा तेरी पेश-क़दमी को बेताब अफ़्कार के तीर तुझे अँधेरे में जुगनुओं की तलाश फिर उम्मीद का इक नया फ़रेब हिम्मत-ओ-हौसला की सरकती चादर हालात के काँटों में फँसी ऐसी कि निकल भी न सकी मंज़िल की तलाश में तन्हा मुसाफ़िर ज़रा दम तो लो अँधेरी रात के मुसाफ़िर ज़रा दम तो लो ख़ुद-फ़रेबी की शम्अ थामे इन ना-हमवार राहों पर ले गया ख़्वाब मुझे सियाह रातों में जलते बुझते चराग़ों के साथ मंज़िल की तलाश में सरगर्दां तन्हा मुसाफ़िर ज़रा दम तो लो अँधेरी रात के मुसाफ़िर ज़रा दम तो लो