सुर्ख़ बत्ती ने इशारे से कहा है बोलो खोज नज़रों का मिटा बात के बंधन टूटे मेरे अल्फ़ाज़ को लहरों का कोई पैमाना छीन ले जाएगा दूरी के बहाने झूटे मुँह से जो निकले उसी बात से नाता छूटे दिल में बाक़ी रहे मौहूम सा एहसास-ए-ज़ियाँ मैं ये सोचूँ कि हर इक दश्त भी आबादी भी मेरे अल्फ़ाज़ की तश्हीर का देखेगी समाँ और बेनाम-ओ-निशाँ देखी न भाली लहरें एक आलम मिरी बातों का ढिन्ढोरा पीटें